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27 Mar 2025 · 6 min read

एक ऐसी अदालत: जहां चोर खुद न्यायाधीश है जिसमें चोरी पकड़ी गई, लेकिन चोर बेगुनाह निकला! मतलब अंधेर नगरी चौपट राजा

साथियों,
इस कहानी को लिखते हुए मैं यह स्पष्ट करता हूं कि ये मेरे द्वारा लिखी गई एक काल्पनिक कहानी है जिनसे भारत के न्याय व्यवस्था और भारतीय राजनीति दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं है: अभिलेश श्रीभारती
चलिए अब हम चलते हैं उसे कहानी की ओर…
एक गांव में एक ऐसा सरपंच था, जिनकी ताकत किसी राजा से कम न थी। गांव के पूर्व मुखिया ने उन्हें ऐसा अधिकार दिया था कि उनका हर आदेश ही कानून माना जाता था। चुनाव भी उनके इशारे पर होता था, और नियम-कायदे भी उन्हीं के मुताबिक चलते थे। अब आप इसकी अंदाजा इस बात से लगाइए कि सरपंच साहब इतने महान थे कि अगर उन पर कोई भ्रष्टाचार का आरोप लगाता, तो वह तुरन्त उसे “गांव का माहौल बिगाड़ने वाला तत्व” घोषित कर देते और मामला वहीं खत्म! गांव के सरपंच साहब का रुतबा किसी राजा-महाराजा से कम नहीं था। गांव के पूर्व मुखिया ने उन्हें ‘फुल पावर’ देकर ऐसा सेट कर दिया था कि अगला सरपंच भी उनके इशारे पर ही तय होता था। गांव की पूरी सत्ता उनकी मुट्ठी में थी—”हम ही क़ानून, हम ही हुकूमत, और हम ही फैसला” टाइप माहौल था।
लेकिन दुर्भाग्य से, सरपंच साहब भ्रष्टाचार के इतने बड़े खिलाड़ी निकले कि अगर कोई उनके खिलाफ आवाज़ उठाने की कोशिश करता, तो उस पर “गांव के सौहार्द को बिगाड़ने” और “कानून व्यवस्था में खलल डालने” का आरोप लगा दिया जाता। कुल मिलाकर, जो बोलेगा, वही दोषी!
एक बार उनके जानकार ने उन पर आरोप लगाने का हिम्मत जुटाया तो सरपंच जी ने उन्हें 6 महीने के लिए सलाखों के पीछे भेज दिया।
अब किसकी हिम्मत थी कि कोई उनके खिलाफ बोले? गांव वाले भी भोले-भाले थे, सरपंच जी को भगवान की तरह पूजते थे। पर मैं कहता हूं कि सरपंच जी भगवान कम और ‘भगोड़ा’ ज्यादा थे—भगोड़ा इसलिए क्योंकि जब भी कोई सवाल पूछता, वह सवाल से ही भाग जाते!
सरपंच साहब के भ्रष्टाचार पर कोई उंगली उठाए, ये कैसे सहन होता? जो भी सवाल पूछता, वही समाज का दुश्मन करार दिया जाता! गांव वालों के लिए ये आम बात थी और उन्हें विश्वास था ये तो स्वयं न्याय के देवता है, क्योंकि सरपंच जी कभी गलत हो ही नहीं सकते थे क्योंकि सभी कायदे कानून उनसे ही चलते हैं और सरपंच जी ही बनाते थे।।

एक दिन, किस्मत ने भी सोचा, “चलो, इस बार इस महान आत्मा का परदाफाश कर ही दिया जाए!”
फिर गांव में एक अजीब नजारा देखने को मिला— सरपंच जी के घर में अचानक सी एक चिंगारी प्रकट हुई और देखते-देखते सरपंच जी का आलीशान महल धू-धू कर जलने लगा! गांव वाले दौड़ पड़े, लेकिन सरपंच जी तो मौके पर थे ही नहीं। दमकल आई, पानी बरसा, आग बुझी… लेकिन फिर जो हुआ, वो किसी बॉलीवुड मूवी के क्लाइमैक्स से कम नहीं था!

दमकल वालों को घर के तहखाने में बड़े-बड़े संदूक पैसों से भरे बोरी मिले, जो पैसों, गहनों, सरकारी योजनाओं की फाइलों और जाने कितने काले धन से भरे थे! मतलब, पूरा ‘भ्रष्टाचार एक्सप्रेस’ वहीं पार्क था। आग बुझाते-बुझाते उन्होंने देखा कि घर में बोरियों में भरी नकदी, सोने-चांदी के गहने और गांव के कई घरों से गायब हुई चीजें पड़ी हैं।
पानी डालकर आग बुझा दी गई। लेकिन असली ड्रामा तो इसके बाद शुरू हुआ!

अब पूरे गांव में सनसनी मच गई। आखिरकार, गांव के सबसे ईमानदार (😂) आदमी और न्याय के मूर्ति के घर से इतना चोरी का माल कैसे निकला? लोग सरपंच जी के दरवाजे पर इकट्ठा हो गए और बोले,
“सरपंच जी, यह सब क्या है?”

सरपंच जी पहले तो सिर खुजलाते रहे, फिर अपने क्लासिक जवाब के साथ आए,
“देखिए भाइयों बहनों, ये पैसे मेरे नहीं हैं। मुझे तो खुद पता नहीं कि ये मेरे घर में कैसे आए?”

गांव वाले भी चौंक गए—”हैं? ऐसा भी होता है? किसी के घर में चोरी का सामान खुद चलकर पहुंच जाता है?” लेकिन गांव वाले भोले थे, उन्हें ज्यादा शक करने की आदत नहीं थी।
गांव वाले हक्का-बक्का थे! “सरपंच जी चोरी करेंगे? ये तो असंभव है! “हमारे सरपंच जी और चोरी? ये तो असंभव है! ये तो ऐसे इंसान हैं जो दिन में दो बार ईमानदारी पर भाषण देते हैं!” अब तक उनके दिमाग में यही फिट था कि अगर सरपंच जी कह रहे हैं, तो जरूर सच ही होगा।
अब सरपंच जी ने अपनी पारंपरिक स्टाइल में कहा,
“इस मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए!”
हम इसकी जांच के लिए आज ही तीन वरिष्ठ अधिकारियों की कमेटी बनाएंगे।
गांव वाले बोले, “हां, बिल्कुल होनी चाहिए!”
अब मामला गंभीर था। गांव के न्याय और निष्पक्षता के प्रतीक, सरपंच जी ने “गहराई से जांच” के आदेश दिए। उन्होंने तीन अधिकारियों की जांच कमेटी टीम गठित करते हुए इसकी जिम्मेदारी दी। ये तीनों कौन थे? अरे भाई, वही तीन चोर और भ्रष्ट्र अधिकारी जिन्होंने भ्रष्टाचार में सरपंच जी का हर कदम पर साथ दिया।।
मतलब अब चोर ही चोर की जांच करेंगे! 😂

अब गांव वालों को ये तो पता ही नहीं था कि इन तीनों का असली पेशा क्या था! वे बड़े गंभीर चेहरे बनाकर गांव के सामने आए और बोले,
“हम इस मामले की निष्पक्ष जांच करेंगे!”

अब जांच शुरू – ड्रामा भी फुल ऑन!

तीनों भ्रष्टाचारियों ने माफ कीजिए अधिकारियों ने ने बहुत गहरी जांच शुरू की—मतलब अपने ‘मालिक’ सरपंच जी को बचाने की तैयारी!

पहला अधिकारी महा ठगलाल बोला, “हमें इस मामले की तह तक जाना होगा।”
दूसरा अधिकारी भ्रष्टलाल बोला, “सच्चाई का पता लगाने के लिए हमें गहराई से सोचना पड़ेगा!”
तीसरा गोलमटोल राम अधिकारी बोला, “हम तब तक नहीं रुकेंगे जब तक असली गुनहगार न मिल जाए!” “गड़बड़ी हुई है, लेकिन दोषी कौन है, यह स्पष्ट नहीं है। हो सकता है किसी ने साजिश के तहत सरपंच साहब के घर में चोरी का माल रख दिया हो। हमें इस पर और गहरी जांच करनी होगी!”

गांव वाले बड़े प्रभावित हुए—”वाह! कितने ईमानदार लोग हैं!”

अब सबके मन में सवाल थी कि तीनों भ्रष्टाचारी माफ कीजिए अधिकारी की इंक्वायरी – ‘निष्पक्षता’ की परिभाषा क्या होगी?

तीनों भ्रष्टाचारी माफ कीजिए अधिकारी अपनी जांच में जुट गए। पंचायत भवन के पीछे बैठकर गहन चर्चा हुई—
पहला अधिकारी: “देख भाई, अगर हम सच बोल देंगे, तो अपना भ्रष्टाचार वाला खेल खत्म!”
दूसरा अधिकारी: “हां, और ज्यादा गहराई में जाएंगे, तो हमारी अपनी चोरी भी पकड़ ली जाएगी!”
तीसरा अधिकारी: “तो फिर? हमारी पोल खुल न जाए हमें कुछ तो करना होगा!”
कुछ दिनों बाद जांच समिति की रिपोर्ट आई, और क्या रिपोर्ट थी, साहब!

रिपोर्ट पंचायत में पेश की गई—

“हमारी निष्पक्ष जांच के अनुसार, यह स्पष्ट है कि सरपंच जी के घर चोरी के पैसे जरूर पाए गए, लेकिन सरपंच जी निर्दोष हैं। असली दोषी ये पैसे हैं, जो बिना परमिशन के उनके घर में आ घुसे!”

गांव वालों ने सिर हिलाया— “हां, हां! पैसे ही तो असली अपराधी हैं! बिना बताए किसी के घर में घुसना बहुत गलत बात है!”

गांव वालों ने सिर खुजाया—”भाई, ये कैसी जांच रिपोर्ट है?”

लेकिन सरपंच जी बड़े गर्व से बोले,
“देखा! मैंने कहा था न कि मैं निर्दोष हूं?”

गांव वालों ने धीरे-धीरे सिर हिलाया और सोचा—”लगता है, हमें ही बेवकूफ समझा जा रहा है!”
सरपंच जी अपने सिंहासन पर बैठे मुस्कुरा रहे थे। तीनों अधिकारी को प्रमोशन मिल गया और गांव में फिर वही पुराना खेल शुरू हो गया—

“चोरी करो, पकड़े जाओ, और फिर खुद ही अपनी जांच करके खुद को निर्दोष बना लो!”

…और इस तरह न्याय की जीत हुई, और उसमें सम्मिलित भ्रष्ट अधिकारियों की भी!

तो साथियों, इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है?
जब कोई चोर अपने ही गैंग के चोरों को जांच के लिए रखता है, तो सच कभी बाहर नहीं आता! बल्कि उल्टा गांव वालों को ही मूर्ख बनाकर यह कह दिया जाता है कि चोरी हुई ही नहीं थी!

और इसी तरह गांव चलता रहता है—सरपंच जी की जय हो!
😂
अब मेरी लिखी हुई इस काल्पनिक कहानी से गांव वालों ने क्या सीखा?

गांव के लोग खुश थे। उन्होंने अब तक ये सीख लिया था—

1. अगर कोई घोटाला हो, तो उसकी जांच खुद अपने भरोसेमंद चमचों से करानी चाहिए।

2. दोष किसी इंसान का नहीं होता, बल्कि चीजों का होता है—जैसे पैसे खुद बायोमेट्रिक सेंसर पास करके सरपंच जी के घर घुस गए थे!

3. जो ज्यादा सवाल पूछे, वो समाज का सबसे बड़ा दुश्मन है।

सरपंच जी अपने सिंहासन पर बैठे मुस्कुरा रहे थे। तीनों चोरों को प्रमोशन मिल गया और गांव में फिर वही पुराना खेल शुरू हो गया—

“चोरी करो, पकड़े जाओ, और फिर खुद ही अपनी जांच करके खुद को निर्दोष बना लो!”

नोट: यह लेखक के द्वारा लिखी गई एक काल्पनिक कहानी है। जिनका भारत के न्याय व्यवस्था और भारतीय राजनीति से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है।
✍️ लेखक व् कहानीकार ✍️
Abhilesh sribharti अभिलेश श्रीभारती
सामाजिक शोधकर्ता, विश्लेषक, लेखक

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