#क़तआ

#क़तआ (मुक्तक)-
■ सारा खेल तसलसुल का।
[प्रणय प्रभात]
“नज़ाक़त से कहा है जो, नफ़ासत से पढ़ा जाए,
अगर ऐसा न हो पूछे कोई, अहसास कैसा है?
यही बोलेगा इक शायर, यही अल्फ़ाज़ बोलेंगे,
तसलसुल टूटना भी सांस की टूटन के जैसा है।।”
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#कहने_का_मतलब-
अशआर (शेरों) की रवानी (बहाव) बिल्कुल साँसों की तरह होना चाहिए। एकदम संतुलित व नियंत्रित। कोई फ़ायदा नहीं बेहतर लिखने का। अगर सलीक़ा न हो उसे पढ़ने का।।
-सम्पादक-
न्यूज़&व्यूज (मप्र)