जीवन और मृत्यु: एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण। ~ रविकेश झा

नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप सब आशा करते हैं कि आप सभी अच्छे और स्वस्थ होंगे सभी मित्र ध्यान कर रहे होंगे। निरंतर ध्यान का अभ्यास करने से आप स्वयं से तो परिचित होंगे ही बल्कि आप पूरे ब्रह्मांड से भी परिचित होंगे क्योंकि आपके अंदर विराट संभावना है आप बहुत कुछ हो लेकिन बस शरीर को ही सच मान लिए हो। लेकिन ऐसा कब तक चलेगा जब आपके पास संभावना मौजूद है फिर आप समय को सार्थक उपयोग करते रहे और होश के साथ कनेक्ट रहकर जीवन का पूर्ण आनंद लेते रहे और आपस में प्रेम करुणा ध्यान बांटते रहे आप स्वयं को कृतज्ञता प्रकट करे बल्कि सामने वाले को भी ऐसे में आप अधिक प्रसन्न रहेंगे और रिश्ता भी मधुर होगा। आज बात कर रहे हैं जीवन और मृत्यु के बारे में जीवन क्या है मृत्यु क्या है सत्य क्या है जीवन या मृत्यु, सांसारिक दृष्टि से जब हम स्वयं को देखते हैं तो हमें बस शरीर दिखाई देता है और उसे सच मान लेते हैं और सोचते भी है देखते भी है दूसरे लोग मर रहे हैं भय भी होता है। ये शरीर को जो सच मान लेते हैं उन्हें मरने वक्त दुःख होगा भय होगा क्योंकि जीवन भर भोग लगाएं पेट पूजा किया और करना चाहते हैं दौड़ जारी रखना चाहते हैं। लेकिन उनका शरीर धोका दे रहा है ऊर्जा है शरीर के चक्र पर चोट करता है प्रहार करता है कुछ और भोग हो जाए, मूलाधार चक्र से जीवन भर ऊपर नहीं उठ पाए वह भोग से अधिक क्या जानते होंगे, अपने ही इंद्रियां से परेशान होते हैं हम। दूसरे और आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो सच कुछ और ही है हमारे पास भौतिक शरीर के अलावा ६ चक्र और है, हम बस एक शरीर से परिचित हैं इसीलिए हमको दुख दर्द महसूस होता है और भौतिक को सच मान लेते हैं। लेकिन वास्तव में हम स्वयं को धोका देते हैं हम मानने के आदि है न की जानने की अगर हम जीवन को ठीक से समझे तो आधा दुख समाप्त हो जाएगा फिर मृत्यु का कोई भय नहीं मृत्यु होगा किसका शरीर का मन का आत्मा का किसका होगा, सब तो यही है जा कौन रहा है सब ब्रह्मांड में ही है कोई शांत हो गए हैं कोई भटक रहे हैं मन के साथ कोई आत्मा तक पहुंच गया कोई शरीर मन तक सीमित रह गया वह फिर जन्म लेगा फिर मरेगा ये चक्र ऐसे ही चलता रहेगा जब तक चक्र का ज्ञान न हो तब तक हम सब जीवन से भी लड़ाई करेंगे और मृत्यु से भी।
जीवन और मृत्यु।
जीवन और मृत्यु दो ऐसी गहन अवधारणाएं हैं, जिन्होंने सदियों से मानवता को आकर्षित किया है। जहां जीवन अनुभवों से भरी एक यात्रा है, वहीं मृत्यु को अक्सर अंतिम गंतव्य माना जाता है। हालांकि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, दोनों एक सतत चक्र में अभिन्न अंग हैं। इस चक्र को समझने से हमारे अस्तित्व और उद्देश्य के बारे में गहरी अंतर्दिष्टि मिल सकती है।
जीवन का चक्र।
जीवन को अक्सर एक उपहार, दुनिया का अनुभव करने और आध्यात्मिक रूप से विकसित होने का एक अनमोल अवसर माना जाता है। कई आध्यात्मिक परंपराएं जीवन को सबक की एक श्रृंखला के रूप में देखती हैं। प्रत्येक अनुभव, चाहे वह आनंददायक हो या चुनौतीपूर्ण, आत्मा के विकाश में योगदान देता है। जीवन की चुनौतियों को स्वीकार करके, व्यक्ति ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं और आध्यात्मिक ज्ञान के करीब पहुंच सकते हैं। इसके अलावा, जीवन को सार्थक संबंध बनाने, प्रेम फैलाने और दुनिया पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ने का एक मौका माना जाता है। यह उद्देश्य खोजने और अपने सच्चे स्व के साथ जुड़ने के बारे में है अगर हम ध्यान में रहे तो और सार्थक हो सकता है। यह यात्रा केवल व्यक्तिगत विकास के बारे में नहीं है, बल्कि मानवता की सामूहिक चेतना में योगदान देने के बारे में भी है।
मृत्यु एक संक्रमण के रूप में।
हालांकि अक्सर मृत्यु से भय लगता है, लेकिन कई आध्यात्मिक परंपराओं में इसे अंत के बजाय एक संक्रमण के रूप में देखा जाता है। यह आत्मा का भौतिक शरीर से मुक्त होना और अपनी मूल, शाश्वत अवस्था में वापस लौटना है। यह दृष्टिकोण स्वीकृति को प्रोत्साहित करता है और मृत्यु के आस पास के भय को कम करता है। इस दृष्टिकोण में, मृत्यु एक नुकसान नहीं बल्कि एक परिवर्तन है। आत्मा दूसरे लोक में अपनी यात्रा जारी रखता है या एक नए जीवन में सीखने के लिए पुनर्जन्म लेती है। पुनर्जन्म में यह विश्वास कई आध्यात्मिक परंपराओं में प्रचलित है, जो यह सुझाव देता है कि मृत्यु आत्मा की चल रही यात्रा में केवल एक विराम है। यह सत्य भी है। आप जब तक पूर्ण मुक्त नहीं होते तब तक आप जन्म लेंगे चाहे कोई भी योनि हो। जब आप अपने अनुभव पर आएंगे तो आपको पता लगेगा कि चेतना शारीरिक मृत्यु से परे भी जारी रह सकती है, इस धारणा को चुनौती देते हुए कि मृत्यु पूर्ण अंत है। ध्यान व्यक्ति को अधिक पूर्णता से जीने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, प्रत्येक क्षण को कृतज्ञता और प्रेम के साथ गले लगाते है और लगाना भी चाहिए।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण विकसित करना।
जीवन और मृत्यु पर आध्यात्मिक दृष्टिकोण अपनाने से शांति और पूर्णता मिल सकती है।, ध्यान और प्राथना जैसे अभ्यास व्यक्तियों के अपने भीतर और ब्रह्मांड से जुड़ने में मदद कर सकते हैं। ये अभ्यास आंतरिक शांति को बढ़ावा देता है और आत्मा को उसके अंतिम परिवर्तन के लिए तैयार करते हैं। अस्तित्व की चक्रीय प्रकृति को स्वीकार करके, व्यक्ति जीवन की चुनौतियों और अनिश्चितताओ का समाना करने में प्रेम करुणा विकसित कर सकता है और शांति के पथ पर चल सकता है। समझ करुणा, सहानभूति और सभी जीवित प्राणियों के साथ एक गहरे संबंध को बढ़ावा देती है।
अनंत यात्रा।
आखिरकार, जीवन और मृत्यु अनंत यात्रा में हिस्से हैं। दोनों को खुले हृदय से अपनाने से व्यक्ति अधिक प्रमाणिक और शांतिपूर्ण तरीके से जी सकता है। अभी भौतिक सुख में आप संलग्न है सब का मौत होगा जितना भी भौतिक है सब बिखरेगा सब यहीं रहेगा इसीलिए जब तक समय है उस परमात्मा को खोज लो जो आपको प्रतिदिन देख रहा है हर समय देख रहा है इस साक्षी को खोजना ही अंतिम लक्ष्य है मनुष्य का। यह आध्यात्मिक दृष्टिकोण हमें वर्तमान क्षण पर ध्यान केंद्रित करने, अपने अनुभवों को संजोने और आत्मा की यात्रा की निरंतरता पर भरोसा करने के लिए प्रोत्साहित करता है। अंत में, आध्यात्मिक लेंस के माध्यम से जीवन और मृत्यु को देखने से गहन अंतर्दृष्टि मिलती है जो अस्तित्व के प्रति हमारे दृष्टिकोण को बदल सकती है। इस दृष्टिकोण को अपनाकर, हम भौतिक क्षेत्र से परे अर्थ खोज सकते हैं तथा जीवन और उससे आगे की अपनी यात्रा में उद्देश्य की गहरी भावना विकसित कर सकते हैं। बस ध्यान के साथ पूर्ण रहना है होश हमें पूर्णता तक पहुंचा सकता है बस हमें ध्यान में पूर्ण उतरना होगा। फिर मन में प्रश्न उठेगा कि जन्म सत्य या मृत्यु, मृत्यु ही सत्य होना चाहिए जो शाश्वत है जहां आत्मा की गहराई है जीवन भौतिक से जुड़ा है मृत्यु आत्मा से अगर पूर्ण मरे तो, नहीं तो मन भावना के साथ भटके रहेंगे। इसीलिए ध्यान का स्वाद चखना होगा तभी हम पूर्ण ज्ञाता होंगे संतुष्ट होंगे आनंदित रहेंगे।
धन्यवाद।
रविकेश झा,
🙏❤️