वाचिक परंपरा के कवि
वाचिक परंपरा के
स्मरणीय कवि
जिनका सानिध्य मिला
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शब्द अर्थ के भाव सुमन से, काव्य मंच महकाया है।
वे प्रणम्य है जिनसे हमने, बना हुआ घर पाया है।
शुक्ल सनेही, शंकर,बच्चन, दिनकर देवराज जैसे।
रमानाथ, नेपाली, शिशु को, रंग मुकुल भूलें कैसे।
विकल अदम वीरेन्द्र,मुकुटजी, यादआये विमलेशकी।
कवि राही ब्रजेन्द्र अवस्थी,साथ साथ उर्मिलेश की।
सुमन सरल बेचैन कुंवर जी, बैरागी व नीरज जी।
माथे लगा धन्य हो जाउं उनके चरणों की रज जी।
व्यास विराट, सूंड़, मनहर ने, पूरा जोर लगाया है।
वे प्रणम्य हैं जिनसे हमने, बना हुआ घर पाया है।
याद आ रही निर्भय काका भौंपू बेढब छैल की।
हुल्लड़,कुल्हड़,अल्हड़,पागल, माणिकवर्मा शैलकी।
श्रेष्ठ छंद आदित्य, जैमिनी, अग्निवेश,शिवअर्चन की।
बाण प्रमोद तिवारी प्यारे, हाहाकारी, कवि सनकी।
गौतम तुलसी श्याम नारायण, विश्वेश्वर,व चॅंद्रशेखर।
के पी शरद गये परसाई, भारत भूषण माहेश्वर।
जिससे जैसा बना काव्य का,जन मन मान बढ़ाया है।
वे प्रणम्य हैं जिनसे हमने, बना हुआ घर पाया है।
ओज कहा चेतना जगाई,स्वर था सदा गगन भेदी।
वेद प्रकाश सुमन व चंचल राम कुमार चतुर्वेदी।
दामोदर विद्रोही,निर्धन,पारस भ्रमर, पवन दीवान।
नीरजपुरी, विकट,ज्वालामुखी बादल,ओम पवन चौहान।
करते रहे दिलों में बसकर,नित नूतन भावों की खोज।
मान और अपमान भूलकर, राजेन्द्र राजन,किशन सरोज।
खुशी खुशी यारों में अपना, खुलकर माल उड़ाया है।
वे प्रणम्य हैं जिनसे हमने बना हुआ घर पाया है।
समापन
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ठाकुर ब्रजमोहन,अनुरागी, ओंकारपंडित,श्री बाल।
धरणीधर,सुमित्र, विद्रोही,
मिश्री घोली मिश्रीलाल।
मिला सुखद सानिध्य शुरू में,
तरुण जवाहर, तुलसी राम।
देते सीख धनंजय वर्मा,विद्या गुरू करेली धाम।
नेह अशीष सदा दे मेरा, हास्य व्यंग दुलराया है।
वे प्रणम्य हैं जिनसे हमने बना हुआ घर पाया है।
धंधा बढ़ा रहे व्यापारी,
प्रतिभाहीन मीडिया से।
चार छंद भी नहीं जानते, बाहर जायॅं इंडिया से।
चमक रहे रंगीन सितारे,नभ में घोर समर्पण से।
कुछ की छवि तो झलक रही है,
मिर्ज़ापुर के दर्पण से।
अमृत जहर शराब सभी है, माना सागर मंथन में।
पर सुधार भी करना होगा, कवि मानस के चिंतन में।
बजी समय की वीणा माॅं ने,यह संदेश सुनाया है।
वे प्रणम्य हैं जिनसे हमने, बना हुआ घर पाया है।
गुरु सक्सेना
26/10/24/
जनवरी 2025