खालीपन
अकेला रहता सूर्य
जैसे पृथ्वी की चन्द्रमाएँ
कहोगे! मुझे भी उपमान दो
अकेलापन की।
मेरे मन की कल्पनाओं की।
मेरे वजूद की।
मेरे अंतर्रात्मा की काली रात!
खौफनाक है
लौटता मेरा खालीपन
जिसमें याद आती हैं मेरी माई
जिनके भाषा की खड़ी पाई की परिभाषा की
प्रमाणिकता पर बीतता मेरा वसंत का होना
पर अब उनके अनुपस्थिति में
मेरा अकेला रहना बड़ी त्रासदी है।
कुछ वर्षों के अंतराल में…
तुम्हारी नदी अब मेरे शहर की ओर नहीं गुजरती है
मेरे खिड़कियों के अंदर – प्रकाश भी उतनी नहीं बची है
बहुत खाली-खाली है
मन की कल्पना
वजूद
अंतर्रात्मा सबकुछ।
वरुण सिंह गौतम
Varun Singh Gautam