*भीतर के राज आजकल गाती कचहरी (हिंदी गजल)*

भीतर के राज आजकल गाती कचहरी (हिंदी गजल)
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1)
भीतर के राज आजकल गाती कचहरी
शीर्षक में समाचार के आती कचहरी
2)
अच्छाइयॉं सुनी थीं बहुत जोर-शोर से
पीती है चाय बस हवा खाती कचहरी
3)
सबको पता है न्याय तो मिलता नहीं कभी
फिर भी सभी के दिल को लुभाती कचहरी
4)
जो जानकार हैं उन्हें मालूम है कला
पलड़े को किस तरह से झुकाती कचहरी
5)
सब ने यही सुना है कि तारीख पड़ गई
कब फैसले को कोई सुनाती कचहरी
6)
तोड़ें विपक्ष को अगर कुछ जोड़-तोड़ से
फिर देखिएगा कैसे जिताती कचहरी
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451