मुझसे तुम अब यह मत चाहो

मुझसे तुम अब यह मत चाहो, क्योंकि ऐसा अब मैं कर नहीं सकता।
तुम चाहते हो मैं तुमको हंसाऊ, मगर तुमको अब मैं हंसा नहीं सकता।।
मुझसे तुम अब यह मत चाहो——————–।।
बताओ मुझे तुम मेरा पाप क्या है, क्या भूल हुई कल को मुझसे।
खामोश क्यों हो तुम इस तरह, तुम्हें प्यार मिला नहीं कब मुझसे।।
हाँ, अब वह खुशबू नहीं मेरे लहू में, तुम्हें वैसे अब मैं महका नहीं सकता।
मुझसे तुम अब यह मत चाहो————————।।
आबाद है अब यहाँ वो ही दिल, जो सच छुपाकर बातें करें।
तारीफ उसी की करते हैं सब, चेहरा छुपाकर जो घातें करें।।
मगर मेरा दिल है हिंदुस्तानी, मैं राह बद की अब चल नहीं सकता।
मुझसे तुम अब यह मत चाहो———————।।
नहीं चाहता मैं किसी से ऐसा, कोई कष्ट उठाये मेरे लिए।
वो तोड़कर रिश्ता अपनों से, बदनाम हो वह मेरे लिए।।
तुम मुझको कह लो जी.आज़ाद, मगर वो खुशी अब मैं दे नहीं सकता।
मुझसे तुम अब यह मत चाहो———————–।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)