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28 Jan 2024 · 1 min read

जिंदगी में –

कुछ पढ़ी कुछ अनपढ़ी ही रह गई,
जिंदगी में कितनी कथाऍं मिली।
गूॅंजती है आज भी सुधि -गली में,
कसमसाती दिलों में व्यथाऍं मिली।
जलती रही जो कि मौन रह रहकर,
यूं मिटती कुछ दीपशिखाऍं मिली।
कैसे किसी को ढाॅंढस बंधाऍं,
दुख से ओत-प्रोत प्रतिमाऍं मिली।
हाथ जिस तरफ बढ़ा सहारा बना,
उसी दिल से ढेरों सदाऍं मिली।
आधुनिकता काट नहीं सकी जड़े,
जड़ों से जुड़ी हुई प्रथाऍं मिली।
रास्ता ना रोक सकी संघर्ष जीता,
चाहे कष्टों से भरी घटाऍं मिली।
बड़े चलो तुम मनुजता के पथ पर
अनुभवों से बस ये शिक्षाऍं मिली।
प्रतिभा आर्य
अलवर चेतन एनक्लेव
(राजस्थान)

Language: Hindi
2 Likes · 410 Views
Books from PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
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