नागपाश का हार

जीवन किसी का अतिसुन्दर,
जैसे हरसिंगार।
किन्तु गरीबों के जीवन में,
नागपाश का हार।।
ग़रीबी हुई अभिशप्त,
भुखमरी के शिकार हुए।
बद्तर जीवन, बीमारी,
मौत से भी लाचार हुए।।
पैसा ही सामर्थ्य बना अब,
यही बना संसार।
किन्तु गरीबों के जीवन में,
नागपाश का हार।।
भूख मिटाए पेट की,
या बचाये अस्मत अपनी।
कौन समझे व्यथा,
सूखी रोटी किस्मत अपनी।।
वर्चस्व है सामंतवाद का,
करते यहाँ व्यापार।
किन्तु गरीबों के जीवन में,
नागपाश का हार।।
मज़हब, जाति के नाम पर
यहाँ कराते जो दंगा।
फ़र्क न पड़ता उन्हें ज़रा,
सोया कौन भूखा नंगा।।
गरीबी, भुखमरी है भाषण में,
वार्तालाप हज़ार।
किन्तु गरीबों के जीवन में,
नागपाश का हार।।
रात्रि बिताते सड़क किनारे,
अंधेरे में सोए जो।
कुचल उन्हें लाश बनाते,
रहे नशे में खोए वो।।
उन पर कोई केस न बनता,
हैं वो राजकुमार।
किन्तु गरीबों के जीवन में,
नागपाश का हार।।
मलिन मानते उन्हें यहाँ सब,
करते दुर्व्यवहार।
लाशें भी लावारिस होती,
मिलता ना परिवार।।
बड़ी-बड़ी बैठक में केवल,
होता रहा विचार।
किन्तु गरीबों के जीवन में,
नागपाश का हार।।
आंकड़ें सरकारी,
लाशों की गिनती कम करते।
कौन करे रहम यहाँ
जब ईश्वर ही न रहम करते।।
बिज़नेस मैन के टैक्स छूट पर
होता है विस्तार।
किन्तु गरीबों के जीवन में,
नागपाश का हार।।
प्रेम रही बस परिभाषा,
नफरत का बाजार यहाँ।
शहर की गन्दी गलियां,
कैसे हो चमत्कार यहाँ?
बनकर बाबा और मसीहा,
करते यहाँ उद्धार।
किन्तु गरीबों के जीवन में,
नागपाश का हार।।
दफ़्न हो रहा भाईचारा,
प्रतिदिन है विवाद यहाँ।
अपने धुन हैं मग्न सभी,
करे कौन फ़रियाद यहाँ।
बड़ी मछली छोटी मछली का
करती यहाँ शिकार।
किन्तु गरीबों के जीवन में,
नागपाश का हार।।
@स्वरचित व मौलिक
कवयित्री शालिनी राय ‘डिम्पल’
आजमगढ़, उत्तर प्रदेश।
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