मुक्तक __

मुक्तक __
किताबों से नहीं अब वास्ता लोगों का रहता है ,
जिधर देखो ,उधर मोबाइलों का खेल चलता है ,
नया पाने की ख़ातिर हम ,पुराना भूल जाते क्यूँ ,
हथेली पर लिए सरसों , जहाँ खेती ही करता है।
✍️नील रूहानी .
मुक्तक __
किताबों से नहीं अब वास्ता लोगों का रहता है ,
जिधर देखो ,उधर मोबाइलों का खेल चलता है ,
नया पाने की ख़ातिर हम ,पुराना भूल जाते क्यूँ ,
हथेली पर लिए सरसों , जहाँ खेती ही करता है।
✍️नील रूहानी .