क्या तुम मेरी जिंदगी का ख्वाब हो?

क्या तुम मेरी जिंदगी का ख्वाब हो?
मेरी अनोख प्रिया की शान हो?
जिंदगी में घटते उतरते चढ़ते प्रमाण का एक सुलगता मिसाल हो?
कुएं में पानी कम हो तो तुम बढ़ाती हो पानी को?
यदि आग लगे तो तुम उसे धारा प्रवाहित नदी बनकर उसे सुलझाती हो?
कभी वसुधा, कभी नदी तो कभी तुंग भद्रा, कभी कृष्णा गोदावरी की धारा में पिरोहित हो होकर पिरो-पिरो कर नजारा बनाते हुए चलती हो?
ऐसी नहीं कोई तुम्हारी जय-जयकार करता है?
तुम तो प्रिया महान प्रिया की ही सब बात करता है?
तुम्हारी बातें सुनकर मेरा दिल खुश होता है,
तुम्हारी याद में मेरी रातें गुजरती हैं।
क्या तुम मेरी जिंदगी में हमेशा रहोगी?
रचनाकार: बाबिया खातून