स्मृति मीमांसा
स्मृति मीमांसा
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स्मृतियों के अविस्मृत क्षण पलों का यह भाव भरा संसार।
जीवन औदार्य संघर्ष पीड़ा सभी कुछ पा लेते आकार।।
कृत कर्मों के मीठे मीठे स्पंदन होते झंकृत हृदय तल में।
जीवन की जीवन यात्रा का मर्म हो उठता सहज साकार।।
रिश्ते नाते संबंध मोह अलंकृत दृग पट पर चलते जाते हैं।
सहसा उठने लगता ज्वार नैनों में जो विश्लेष यहां पाते हैं।।
सारा जीवन क्रम सम्मुख हाजिर हो जाता मनोकोष सम।
शिशुकाल से आज तलक कैसे बीते मन को समझाते हैं।।
सब कुछ महिमा अकाट्य काल की या की करुणाकर की।
पराधीन मानव जीवन में देखो उलट पलट छाया तरुवर की।।
सहज बहा जीवन नदिया सा जो होना था सो होता ही रहा।
आश्रय तेरा अंतिम सत्य है क्या करूं मीमांसा उस सत्वर की ।।
स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)