विजयादशमी
हमने इस बार विजय दशमी मनाया !
बतौर रावण के नेताओं को भी बुलवाया !!
समय शाम का था ! नारा राम का था !!
रावण के साथ-साथ…
मेघनाथ और कुंभकर्ण के पुतले खड़े थे !
हर वर्ष जलने के बाद भी…
फिर से आ धमकने की जिद पर अड़े थे !!
हम भी बड़े मजे के साथ देख रहे थे नजारा !
तभी लगा “जय श्रीराम” का नारा !!
और फिर नेताजी ने रावण के पुतले को जलाने
जैसे ही मशाल जलाई !
यह देखकर…
रावण की कलपती आत्मा जोर-जोर से चिल्लाई !!
मेरे सरकार ! मेरे भाई !
मुझे मत दहकाइए !
अरे ! भाई होकर कम से कम
अपने सगे भाई को तो मत जलाइए !!
पुतले की बोलती अभी भी जारी थी !
उसे जलाने ऐडी-चोटी की तैयारी थी !!
वह बार-बार हॉफ रहा था !
डर के मारे सर से पांव तक कांप रहा था !!
उसके मुख से नहीं निकल रही थी चीख !
फिर भी गिड़गिड़ाते हुए…
अपने प्राणों की मांग रहा था भीख !!
नेताजी !
आपका और हमारा कितना नाम है !
अपने ही भाईयों को मारना-काटना
हम राक्षसों का नहीं बल्कि इन इंसानों का काम है !!
रावण का पुतला अपनी चिरपरिचित अदाओं में
अट्टहास करते हुए रहस्य खोल रहा था !
उसे देखकर ऐसा लगता था मानो !
वह देश का कड़वा सत्य बोल रहा था !!
नेताजी !
हमारी राक्षसी प्रवृत्ति आज भी लोगो में जिंदा है !
इसलिए तो ईमानदार, मर्यादा रूपी राम
हमारे “हाफ मर्डर” केस में आज तक शर्मिन्दा है !!
मेरे भाई !
मुझे जलाना हो तो पहले राम बनकर दिखाओ !
नहीं तो दुश्मनी छोड़कर आओ गले लग जाओ !!
और इंसानियत, ईमानदारी जैसे
मर्यादा रूपी राम को जहां भी देखो !
तो उसे जड़ समेत तत्काल उखाड़ कर फेंको !!
तभी नेताजी ने जैसे ही जलती मशाल
राम के प्रतिरूप को थमाया !
उधर फिर रावण का पुतला हंसते हंसते चिल्लाया !!
कि जलाओ-जलाओ कितनी बार जलाओगे ?
हर दिन भी जलाओगे…
तो कयामत तक खत्म नहीं कर पाओगे !!
लेकिन मूर्खो ! इतना जरूर समझ लो…
कि हम लोगो को वही शख्स जला पायेगा !
जिसका चरित्र वास्तव में
मर्यादा पुरूषोत्तम राम की तरह स्पष्ट नजर आयेगा !!
• विशाल शुक्ल