गाँधी
ठीक गांधी जयंती के दिन…
जैसे ही हमने धूल साफ करने गांधी प्रतिमा उठाई !
तभी उसमें से सिसकने की आवाज आई !!
आवाज सुनने हमने अपना कान लगाया !
तो हमारे चेहरे पर
उनकी आंखों से निकला आसूं टपक आया !!
अहिंसा के पुजारी की आंखों में आंसू देखकर…
मेरा दिल काफी रोया !
पर दिल पर पत्थर रखकर आंसू धोया !!
और पूछा…
बाबा शांति और अहिंसा के
इस पुजारी को क्या हो गया है !
जो उसका हृदय छलनी छलनी हो गया है !!
तभी प्रतिमा से फिर आवाज आई !
हे कवि बन्धु !
मेरे आदर्शों और सिद्धांतों को
तुम ही बचा सकते हो बचाओ !
जरा मेरे इन प्यारे बंदरों को समझाओ !!
ये बंदर संसद हो या पोरबंदर
मेरे आदर्शों को छोड़ रहे हैं !
बुरा देखने बोलने और सुनने की
अंधी प्रतियोगिता में दौड़ रहे हैं !!
मेरा पहला बन्दर राम मंत्र की तरह
आजकल खूब गलियां जप रहा है !
कान में उंगली लगा लगाकर दूसरा बन्दर
पहले की अपेक्षा ज्यादा अच्छा सुनने की
कोशिश कर रहा है !!
बुरा न देखने वाले तीसरे बन्दर ने
तो गजब ही कर डाला है !
इस देश का अंधा कानून को भी
मात दे डाला है !!
वह अब आँखें फाड़ फाड़ कर
हिंसा, साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार, आतंकवाद
और लूट के नए नए दृश्य फिल्माता है !
और मजे से पूरी दुनिया के सामने
लाईव टेलीकास्ट करवाता है !!
मेरे इन नेता बंदरों ने मेरे आदर्शो
और नाम को कलंकित कर दिया है !
मेरी प्रतिमा को भी अपनी स्वार्थ सिद्धि
के अनुसार रंग दिया है !!
हद तो तब होती है !
जब मेरे आदर्शो और सिद्धांतों की अर्थी
भ्रष्टाचार अशांति साम्प्रदायिकता और हिंसा
के कांधे पर निकलती है !!
और लोग नोट पर छपे मेरे चित्र को दिखाकर
मजे से कहते हैं गांधी की आज भी चलती है !!
यह सच है कि गांधी की गांधी गिरी
केवल फिल्मों में चलती है !
पर वास्तविकता में वह भ्रष्टाचारियों के
पांव तले पग पग कुचलती है !!
आजाद भारत की यह दशा देखकर मैं अपने
जन्म और निर्वाण दिवस पर खून के आंसू पी लेता हूं !
और तुम जैसे संवेदनशील कवियों से मिलकर अपने जख्म सी लेता हूं !!
• विशाल शुक्ल