विभिन्न संप्रदायों, मजहबों और मतों की स्थापना की सच्चाई (The truth behind the establishment of various sects, religions and beliefs)

भगवान् श्रीराम आजीवन सनातन धर्म, संस्कृति,योग साधना, जीवनमूल्यों, दर्शनशास्त्र और राजनीति के हितार्थ कार्य करते रहे थे।समस्त धरा पर उनके जीवन को केंद्र में रखकर सैकड़ों रामायण लिखी गई हैं।भगवान् श्रीकृष्ण ने किसी हिन्दू मत की स्थापना नहीं की थी। उनके मोक्ष के पश्चात् अनुयायियों ने उनकी शिक्षाओं को केंद्र में रखकर
कई भक्तिमार्गी मतों की स्थापना की थी। भगवान् श्रीराम और श्रीकृष्ण के जीवन का सनातनियों पर सर्वाधिक प्रभाव रहा है। केवल इसीलिये सर्वप्रथम बौद्ध मतानुयायियों ने तथा उनके पश्चात् जैनियों ने उपरोक्त दोनों महापुरुषों के चरित्र को विकृत करके प्रस्तुत करने में पूरा जोर लगाया था , ताकि खुद के मतों का प्रचार-प्रसार किया जा सके।जैन मतानुयायियों के प्रयास अधिक कारगर नहीं रहे, जबकि बौद्ध मतानुयायी अपने इस छल और कपटाचरण में पूरी तरह से सफल रहे थे। सनातन धर्म और संस्कृति के विरोध में आज भी बौद्ध मतानुयायियों का यह कपटाचरण चल रहा है। राजसत्ता का फायदा उठाकर दोनों महापुरुषों के चरित्र को विकृत करने के लिये सैकड़ों पुस्तकें लिखी गईं तथा पुराणों आदि में बहुतायत से मिलावट की गई।
भगवान् महावीर ने किसी जैन मत की स्थापना नहीं की थी। उन द्वारा केवली करने के पश्चात् उनके शिष्यों ने जैन मत की स्थापना की थी।भगवान् गौतम बुद्ध सनातन धर्म और संस्कृति का प्रचार-प्रसार करने वाले थे। उन्होंने किसी बौद्ध मत आदि की स्थापना नहीं की थी।उनकी सभी शिक्षाएं आचरण की पवित्रता को केंद्र में रखकर थीं। बौद्ध मत का निर्माण उनके निर्वाण के पश्चात् बौद्ध भिक्षुओं ने किया था। भगवान् सिद्धार्थ गौतम बुद्ध की शिक्षाओं से बौद्ध मत का अधिक लेना देना नहीं है। सनातन धर्म और संस्कृति को बदनाम करके खुद के मत का प्रचार-प्रसार करने के लिये बौद्ध मतानुयायियों ने भगवान् सिद्धार्थ गौतम को माध्यम बनाया है। बौद्ध मत की पूरी यात्रा में भगवान् सिद्धार्थ गौतम की अहिंसा,करुणा, प्रेम,भाईचारे,सह -अस्तित्व,योग साधना,वेद, उपनिषद्, आर्य जीवन- चर्या, राष्ट्र भक्ति आदि का कोई भी स्थान नहीं है। बौद्ध मतानुयायियों ने इस मत की स्थापना करते ही सनातन धर्म,संस्कृति,नैतिकता,दर्शनशास्त्र,योग साधना और राष्ट्र रक्षा पर प्रहार करना शुरू कर दिया था। स्वयं अशोक पहला ऐसा सम्राट था जिसने भारत की सर्वमतसमभाव वाली राजनीति को समाप्त करके बौद्ध मत को राजमत बना दिया था। लाखों वर्षों पुरातन भारतीय संस्कृति पर यह पहला हमला था।
काफी वर्षों तक बौद्ध मतानुयायियों के पास अपना खुद का धर्म, संस्कृति,दर्शनशास्त्र, नैतिकता, योग-साधना आदि कुछ भी नहीं था। और तो और बौद्ध मत के अधिकांश प्रसिद्ध दार्शनिक और विचारक भी सनातन धर्मी ही रहे हैं। आयातित महापुरुषों के बल पर बौद्ध मत की यात्रा चलती रही है। सनातन धर्म, चार्वाक,आजीवक, जैन मत आदि मतों से इन्होंने महापुरुष, दर्शनशास्त्र, नैतिकता, तर्कशास्त्र, जीवनमूल्यों को चुरा चुराकर अपने मत को मजबूती देने का काम किया है। आधुनिक युग में महर्षि दयानंद सरस्वती ने इनका भांडाफोड करने का सर्वाधिक प्रयास किया है। इनके पश्चात् तो पुरुषोत्तम नागेश ओक, पंडित वैंकटचल्लैय्या, पंडित भगवद्दत्त, राजीव भाई दीक्षित, चंद्रधर शर्मा, आचार्य बैद्यनाथ, आचार्य उदयवीर आदि कई महापुरुषों ने महत्वपूर्ण काम किया है। आजकल संदीप देव, राजीव मल्होत्रा,आचार्य अग्निव्रत आदि बहुत बढ़िया काम कर रहे हैं।
जब बौद्ध मत की शुरुआत हुई तो उस समय जनमानस को बरगलाने के लिये बौद्ध मतानुयायियों ने अपने मत को ही ‘एस धम्मो सनंतनो’ यानी ‘यही सनातन धर्म है’ कहकर प्रचारित करना शुरू कर दिया। इनका यही आशय था कि इससे सनातन धर्मियों में भ्रम की स्थिति बनी रहे तथा वो बौद्ध मत को ही सनातन धर्म समझने की गलती करते रहें।ऐसा ही एक अन्य कपटाचरण इन्होंने तिब्बत में सनातन धर्म के साथ किया था।जब भी बौद्ध मतानुयायी तिब्बत में गये तो उन्होंने सनातन धर्म को बौन धर्म कहकर प्रचारित करना शुरू कर दिया। ताकि तिब्बतियों में यह भ्रम बना रहे कि बौद्ध मत ही बौन मत है।ऐसा ही छल इन्होंने महर्षि गौतम के न्यायसूत्र तथा महर्षि कपिल के सांख्यसूत्र में मिलावट करके किया था। जब सनातनी दार्शनिकों से बार बार पराजित होते रहे तो पहले तो खुद के न्यायशास्त्र के ग्रंथ बनाये, लेकिन फिर भी बात बनी नहीं। आखिर में हारकर सनातन धर्म और दर्शनशास्त्रीय ग्रंथों में प्रक्षेप करना शुरू कर दिया।हालांकि इनको इस कार्य में इतनी सफलता नहीं मिली। वाचस्पति मिश्र जैसे दार्शनिकों ने आगे आकर इनकी पोल खोल की। बौद्ध मत के बारे में एक अन्य झूठ बार बार फैलाया जाता रहा है कि यह यह मत जहां भी गया वहां पर अहिंसा, करुणा, भाईचारे के बल पर गया।यह बिल्कुल झूठ है। बौद्ध मत भारत से बाहर भी खुद की कमियों की वजह से गया था तथा बाहरी देशों में उसका विस्तार भी छल,बल और धोखाधड़ी से हुआ था। स्वयं तिब्बत में वहां पर पहले से मौजूद सनातनी धर्म निवासियों पर बौद्धों ने अनेक अत्याचार किये थे। सैकड़ों वर्षों तक परस्पर संघर्ष होता रहा था। नालंदा विश्वविद्यालय के शान्तरक्षित, पदम् संभव,कमलशील आदि ने वहां पर खूब छल,बल और धोखाधड़ी से काम किया था। आजकल इस विषय पर संदीप देव जी काफी काम किया है। पहले से मौजूद तिब्बत की सनातन धर्मी शैव शाखा पर इन्होंने खूब अत्याचार किये थे। कैलाश मानसरोवर इसका गवाह है।
ईसाई मत की स्थापना ईसा मसीह ने नहीं अपितु सेंट पाल आदि ने उनके देहांत के बाद की थी। ईसाई मत की शिक्षाओं पर पूरी से उपनिषद्, अद्वैत वेदांत,श्रीमद्भगवद्गीता तथा सनातन के समीप बौद्ध मत की महायान शाखा का पडा था। प्रेम, करुणा, भाईचारे की सीख देने वाले ईसा मसीह का बाद में प्रचलित ईसाई मत से कोई संबंध नहीं है। जितने युद्ध,मारकाट, नरसंहार, विदेशों पर कब्जे और तख्तापलट ईसाई मत को मानने वाले सम्राटों और पोप ने किये हैं उतने किसी ने भी नहीं किये।यह सब कुछ आज भी चल रहा है।इसी प्रकार से पैगंबर मोहम्मद की शिक्षाओं से इस्लाम का बहुत कम संबंध है। बाद के इस्लामी खलीफाओं, सम्राटों, हमलावरों ने यूरोप, एशिया और अफ्रीका में कौन कौनसे ज़ुल्म नहीं किये ?
सिख मत की स्थापना गुरु नानक ने नहीं की थी।दसम् गुरु गोविंद सिंह तक सिख मत सनातन धर्म के रूप में ही प्रचलित था। गुरु ग्रंथ साहिब की वाणी इसका प्रमाण है। लेकिन पिछली दो सदियों के दौरान इसे भी सनातन धर्म के विरोध में प्रचलित कर दिया गया।आज सिख मतानुयायी अपने आपको सनातन धर्म से अलग मानकर चल रहे हैं। इनके केंद्र में गुरु नानक देव ही रहे हैं। समकालीन गुरुओं का तो कहना ही क्या है!ये तो एकदम से अपने आपको परमात्मा घोषित करके सनातन धर्म और संस्कृति के प्रतीकों का उपहास करने लगते हैं। सनातन धर्म और संस्कृति पर चहुंमुखी आक्रमण हो रहे हैं। सनातन धर्म में ध्वज पूजा किसी भी काल में नहीं रही है लेकिन पिछली सौ वर्षों से प्रचलित एक संगठन आजकल किसी देवता आदि की पूजा न करवाकर ध्वज की पूजा करवा रहा है। राजसत्ता,धनसत्ता और धर्मसत्ता के बल से इन्होंने खूब घालमेल फैला रखी है।
आचार्य रजनीश ने सिद्धार्थ गौतम बुद्ध के जीवन, दर्शनशास्त्र, नैतिकता,योग साधना आदि को अत्यधिक बढा चढ़ाकर प्रस्तुत किया है। लगता है कि जैसे वो भी सनातन धर्म और संस्कृति पर अब्राहमिक मजहबों की तर्ज पर आघात करने के प्रयास में लगे रहे। बुद्ध और बौद्ध मत के संबंध में अपनी प्रवचन श्रृंखला ‘एस धम्मो सनंतनो’ में आचार्य रजनीश ने बौद्ध मत की अतीत की करतूतों पर मौन धारण किये रखा था। जनसाधारण हों या फिर विशिष्ट जन हों, सबको उनकी तार्किक बातें मनमोहक लगती हैं। ऐतिहासिक तथ्य तो आचार्य रजनीश के प्रवचनों में पूरी तरह से अब्राहमिक विचारकों से उधार लिये गये हैं। उनमें रत्तीभर भी सच्चाई नहीं है। आजकल आचार्य प्रशांत जैसे लोग भी उन्हीं की परिपाटी पर चल रहे हैं।
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आचार्य शीलक राम
दर्शनशास्त्र -विभाग
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र -136119