शानू और बारात पहाड़ी गांव की!🧐

साल 1990, गर्मी के दिन, हाजीपुर का 11 साल का शानू अपनी ज़िंदगी की सबसे रोमांचक यात्रा पर जाने वाला था।उसे बारात जाने का बहुत शौक था, खासकर उन जगहों पर जहाँ पहाड़ दिखने की संभावना हो। इस बार उसे मौका मिला अपने एक रिश्तेदार की बारात में जाने का, और वह भी गया जिले के एक सुदूर गाँव में, जहाँ पहाड़ और जंगल दोनों थे।
गाँव तक पहुँचना आसान नहीं था। बरसात में सड़कें दलदल बन जाती थीं, इसलिए वहाँ शादी हमेशा गर्मी के दिनों में ही रखी जाती थी ताकि गाड़ियाँ किसी तरह गाँव तक पहुँच सकें। इस सफर में कोई पक्की सड़क नहीं थी, बस कच्चे रास्ते, जिन पर गाड़ी हिचकोले खाते हुए आगे बढ़ती।
शानू की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था। जैसे ही बारात के लिए बस बुक की गई, वह अपनी माँ से बार-बार पूछने लगा—”कब चलेंगे?””कितनी देर में पहुँचेंगे?””क्या सच में वहाँ पहाड़ दिखेंगे?”
बारात का सफर शुरू आखिरकार, वो दिन आ ही गया। दोपहर के 2 बजे बारात रवाना हुई। सभी रिश्तेदार अपनी सबसे अच्छी पोशाक पहनकर तैयार थे। ढोल-नगाड़ों की धुन पर सब झूम रहे थे। शानू भी बस में सबसे आगे वाली सीट पर बैठ गया, ताकि रास्ते का पूरा मज़ा ले सके।
जैसे-जैसे शहर- कश्बा पीछे छूटता गया, कच्चे रास्ते शुरू हो गए। खेत, तालाब, मिट्टी के घर और दूर-दूर तक फैले आम के बाग़—शानू मंत्रमुग्ध होकर सबकुछ देख रहा था। लेकिन असली रोमांच तो तब शुरू हुआ जब बस ने पहाड़ी रास्ते पर चढ़ना शुरू किया। शानू की तो खुशी के मारे आँखें चमकने लगीं—”वाह! बिल्कुल वैसा ही जैसा फिल्मों में होता है!”
रास्ता बहुत संकरा था। एक तरफ गहरे खेत थी और दूसरी तरफ उबर- खाबर रोड। ड्राइवर धीरे-धीरे बस चला रहा था।
शाम के 6 बज चुके थे। बस अब खेतों की संकरी पगडंडियों पर हिचकोले खाते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी। चारों तरफ घना अंधेरा पसर चुका था, और गाँव अभी भी करीब 8 किलोमीटर दूर था। बस में बैठे सभी बाराती बेसब्री से मंज़िल तक पहुँचने का इंतजार कर रहे थे, तभी अचानक बस झटके से रुक गई।
“अब क्या हुआ?”—बस में हलचल मच गई।सबकी साँसें थम गईं। ड्राइवर ने बताया कि आगे का रास्ता कट गया है और अब एक डाइवर्ज़न से जाना पड़ेगा। लेकिन डाइवर्ज़न इतना आसान नहीं था—बस को गहरे गड्ढे में उतरकर पार करना था, इसलिए सभी यात्रियों को नीचे उतरना पड़ा ताकि भार कम हो सके।
बुजुर्गों को छोड़कर बाकी सभी लोग बस से उतर गए। बस धीरे-धीरे गड्ढे को पार करने लगी। ड्राइवर ने बड़ी मुश्किल से बस को दूसरी तरफ निकाला और वहीं रोक दिया। अब थोड़ी राहत की घड़ी थी। कुछ लोग हल्का होने के लिए खेतों में चले गए, तो कुछ बीड़ी सुलगाने लगे।
ड्राइवर भी बीड़ी पीने बैठ गया। धीरे-धीरे सब लोग वापस बस में चढ़ने लगे। ड्राइवर ने अपनी बीड़ी का आखिरी कश लिया, कंडक्टर को सीट पर बैठने का इशारा किया और बस आगे बढ़ा दी। लेकिन इसी जल्दबाज़ी में एक बड़ी गड़बड़ हो गई—बस में चढ़ने से पहले ही पाँच लोग पीछे छूट गए।
उन पाँच लोगों में एक शानू भी था।
बस की गड़गड़ाहट में उनकी आवाज़ दब गई, और देखते ही देखते बस अंधेरे में ओझल हो गई। चारों तरफ घना अंधेरा, दूर-दूर तक कोई गाँव नहीं, और हाथ में टॉर्च तक नहीं। यह सोचकर शानू का दिल ज़ोर से धड़कने लगा।
“अब क्या होगा?”—शानू घबरा गया।
लेकिन तभी उसके एक रिश्तेदार ने कहा, “डरने की जरूरत नहीं, मुझे रास्ता पता है। बस को किस दिशा में गई है, उसे देखते रहो, हम भी धीरे-धीरे वहीं पहुँच जाएंगे।”
यह सुनकर शानू को थोड़ी राहत मिली। उसने ऊपर आसमान की तरफ देखा—टिमटिमाते तारे घुप्प अंधेरे में बेहद खूबसूरत लग रहे थे। हल्की-हल्की ठंडी हवा बह रही थी। दूर पहाड़ों की हल्की झलक भी दिख रही थी, और यह देखकर शानू के मन में डर की जगह उत्साह आ गया।
“वाह! ऐसा नज़ारा तो मैंने पहले कभी नहीं देखा था!”
एक घंटे से ज्यादा हो गया था चलते हुए, फिर भी कहीं कोई रोशनी नहीं दिख रही थी समय बीतता जा रहा था, लेकिन मंज़िल का कोई अता-पता नहीं था। अब थकावट और घबराहट दोनों बढ़ने लगी थी।
तभी अचानक दूर से एक हरी मर्करी लाइट चमकती दिखी। यह वही लाइट थी जो खासतौर पर शादी समारोहों के लिए लगाई जाती थी। सबकी आँखों में चमक आ गई—”लगता है, हम पहुँच गए!”
लेकिन तभी शानू के उस रिश्तेदार ने हल्की हँसी के साथ कहा, “अरे, अभी तो सूखी नदी आई ही नहीं, तो गाँव कैसे आ सकता है?”
शानू चौंक गया।
“मतलब?”
रिश्तेदार ने समझाया कि गाँव सूखी नदी के उस पार है। यानी अभी और चलना बाकी है।
अब वे लोग फिर से चलने लगे। लेकिन घने अंधेरे में एक अजीब-सी बेचैनी महसूस होने लगी।
धीरे-धीरे डर हर किसी के मन में घर करने लगा।
शानू के लिए यह बारात बनी यादगार कई मिनट और चलते रहने के बाद अचानक सामने एक बिल्कुल सुनसान, डरावनी-सी सूखी नदी आ गई।
फिर भी, इस डरावनी जगह को देखकर भी उन पाँचों के चेहरे पर एक राहत की मुस्कान थी।
“अब हम पहुँचने वाले हैं!”
सूखी नदी पार करते ही गाँव की पहली झलक दिखाई दी, और पाँचों लोग वहीं ठिठक गए।
“ये तो सपनों जैसा खूबसूरत गाँव है!”
गाँव के बीचो-बीच एक चौपाल थी, जहाँ पूरी बारात जमा थी। वहाँ ढोल-नगाड़ों की गूँज थी, और रंग-बिरंगी रोशनी में सब हँसी-खुशी नाच-गाने में मग्न थे।
गाँववालों ने उन पाँचों का “स्पेशल स्वागत” किया। बुजुर्गों ने हँसी में कहा—
“अरे, ये लोग तो अब असली बाराती हो गए! बाकियों की बारात तो बस से आई, लेकिन इन्होंने तो जंगल-नदी पार करके असली रोमांच झेला है!”
शानू के लिए यह मज़ाक से ज्यादा एक यादगार अनुभव था।
“यह मेरी ज़िंदगी की सबसे मज़ेदार और रोमांचक बारात थी!”—शानू ने सोचा और एक बड़ी मुस्कान के साथ बारात की मस्ती में खो गया।
(समाप्त) 😊🎉