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11 Mar 2025 · 1 min read

क़सम

क़समें जो खाते हैं वादा निभाने की हरदम ,
कितने वादा निभाते है शिद्दत से ता-‘उम्र ,

रुस्वा -ए -ख़ल्क़ का ख़ौफ़ ही नही जिन्हे ,
क्यूँकर निभाए वो क़समें जो खायीं थी उन्हें ,

इंसां की सोच पर फ़ितरत भारी हो रही है ,
बदलते दौर इख़्तियार में कमज़ोरी आ गई है ,

भरोसे के जो पैमाने थे अब बदल गए हैं ,
हम अपनों ही के जाल में बस उलझकर रह गए है ,

क़समों की संदीज़गी अब कम हो गई है ,
फ़क़त फ़रेब – ए – ख़याल का सामान बन रह गई है ।

Language: Hindi
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