मैंने सोचा कि———— ?

मैंने सोचा कि———— ?
कल जो सुबह होगी,
उसमें सब कुछ साफ हो जायेगा,
आज जो स्पष्ट नहीं है,
क्योंकि जवाब मुझको भी चाहिए।
मैंने सोचा कि————- ?
देखता हूँ दीपक जलाकर,
और उस दीपक में प्रेम की दीप्ति,
आज जो मेरे प्रेम के अभाव में,
शान्त है कोई आशा लिये।
मैंने सोचा कि———— ?
सींचता हूँ इस फूल को,
कल यह आबाद एक बाग होगा,
मेरा भी सपना साकार होगा,
इससे खुशी मुझे भी होगी।
मैंने सोचा कि————- ?
कल नया साल है,
बदलाव जरूर होगा,
मगर कुछ नहीं हुआ,
सब कुछ वैसा ही है,
ना कोई बात,
ना कोई शुभकामना,
ना कोई प्यार,
ना कोई आकर्षण,
ना कोई उमंग,
ना अपनापन,
कुछ भी तो नहीं बदला।
मैंने सोचा कि———- ?
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)