रस भाव आस्वादन

रस भाव आस्वादन
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रस भाव आस्वादन करते, गायक कवि महान
प्रेम घृणा द्विभाव मूल में,अन्य है संतति समान
श्रृंगार, भक्ति वात्सल्य रस,प्रेम से उपजा जान
प्रेम घृणा ही रस सार है ,कहते हैं वेद पुराण
प्रेम घृणा पर टिका है जग, प्रेम करो निष्काम
सहचर से यदि प्रेम हो तो बने सुशील अभिराम
घृणा हो यदि सहचर से, तो रौद्र रस क्रोध भाव
घृणा प्रेम की धुरी पर ही मिलता फल परिणाम
अनुज से यदि प्रेम तो हो, दयालुता और सद्भाव
अनुज से यदि घृणा हो, विनय विवेक का अभाव
अग्रज से यदि प्रेम तो,मिले निर्वेद भाव रस शांत
अग्रज से यदि घृणा हो, बने भयानक रस दुर्भाव
जब देशप्रेम का भाव तो हो वीर रस निःशंक
घृणा हो यदि वतन से तो वीभत्स रस आतंक
अद्भुत रस रुप श्रीनाथजी,करना नहीं आश्चर्य,
करुण रस परम सत्य है,विदा होना निष्कलंक
मौलिक और स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ०९/०३/२०२५
फाल्गुन ,शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि , रविवार
विक्रम संवत २०८१
मोबाइल न. – 8757227201