महिला दिवस

घनाछरी छंद
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नारी है विधाता जन्मदाता इस सृष्टि की,
वेदों और पुराणों ने महिमा इसकी गायी है।
बेटी भगनी भार्या बन सहेजा जिसने रिश्तो को,
झेले बहु कष्ट लोक रीत भी निभाई है।
कभी सीता सावित्री तो कभी शंभु संगिनी बन,
करने उद्धार कभी दुर्गा बनके आई है।
जिसका प्रेम पाने को प्रभु लेते जन्म बार-बार,
ऐसी ही पवित्र मानो जैसे गंगा माई है।।
~राजकुमार पाल (राज)