मुझ पर तरस खाकर जिंदगी अब

मुझ पर तरस खाकर जिंदगी अब
मुझसे कुछ और करवाने पर अड़ी है
उसके इसी चक्रव्यूह में पड़ कर तो
मेरी सांसे अब भी अटकी पड़ी है
पारस नाथ झा
मुझ पर तरस खाकर जिंदगी अब
मुझसे कुछ और करवाने पर अड़ी है
उसके इसी चक्रव्यूह में पड़ कर तो
मेरी सांसे अब भी अटकी पड़ी है
पारस नाथ झा