दोहा पंचक. . . . . प्रीति
दोहा पंचक. . . . . प्रीति
प्रीति घोष है प्रीति का, धड़कन में नव नाद ।
मुख मयंक पर लाज के, उदित हुए संवाद ।।
धड़कन में रहता सदा, मधुर मिलन मकरंद ।
साँसों से जाता नहीं, यौवन का आनंद ।।
मौन काल में जो हुए, साँसों से संवाद ।
आती है एकांत में, रात वही फिर याद।
दिल जाता है जान यह, आँखों की हर बात ।
हो जाती वाचाल फिर, तिमिर ओट सौगात ।।
जब-जब आँखों से हुए, गुपचुप कुछ संवाद ।
धड़कन से जाता नहीं , उसका मौन प्रमाद ।।
सुशील सरना /2-3-25