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23 Apr 2024 · 1 min read

यथार्थ

कल्पना लोक में विचरण कितना
सुखद होता है ,
परंतु उस व्योम के बादल छंटने पर यथार्थ का
अनुभव दुःखद होता है,

हम समझ नही पाते सत्य सदैव कड़वा होता है ,
झूठ भावित चाशनी में डूबा हुआ मीठा लगता है ,

पूर्वाग्रह ,पूर्वानुमान एवं कल्पित धारणा के
आभासी मंच पर निर्मित काल्पनिक संसार
अस्थायी होता है ,

जबकि, प्रामाणिक तथ्यों एवं तर्कों पर
आधारित वास्तविकता के धरातल पर यथार्थ
स्थायी होता है,

अनुभव एवं प्रज्ञाशीलता की कसौटी पर
सत्यता का आकलन
यथार्थ को सिद्ध करता है ,

जबकि भावनाओं ,अंधविश्वासों ,
अर्धज्ञान , एवं अर्धसत्य पर आधारित आकलन सदैव असत्य सिद्ध होता है ।

सत्य का पथ दुष्कर कंटकों से भरा
संघर्षपूर्ण दुःखद अवश्य होता है ,

परंतु आत्मविश्वास एवं धैर्य से परिपूर्ण
पथिक के लिए अंत में
ग्लानिरहित संतोषप्रद होता है।

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