इश्क़ करके पता चला

इश्क़ करके पता चला , सनम निकला संगदिल।
बात वफ़ा की न समझे, कैसे गये हम मिल।
तारीफें सुन सुन अपनी ,वो ऐसे हैं इतराए
जैसे हुस्न जवानी ,रहते हैं सदा मुस्तकिल
माना हमने उसे ख़ुदा,सजदे में रहे शामो सहर।
दीवानगी देख देख हमारी ,हंसती हम पे महफ़िल।
ये राह ए इश्क ले डूबी हमें , टूटे सारे ख्वाब।समझ न आया हमें , क्या हम इतने है नाकाबिल।
डूबे हैं आग के दरिया में, उफ़ भी न कर पाए
दिखा रास्ता ऐ खुदा, सुना है तू रहमदिल।
सुरिंदर कौर