*हम शाकाहारी (राधेश्यामी छंद)*

हम शाकाहारी (राधेश्यामी छंद)
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1)
हमने वसुधा माना कुटुंब, हम मानवता को गाते हैं।
मानव क्या पशु-पक्षी तक में, हम आत्म-तत्व को पाते हैं।।
2)
हमने गौ को माता माना, हर पशु में ईश्वर-वास कहा।
हमने हर पक्षी हर पशु को, ईश्वर की रचना खास कहा।।
3)
हमने माना जग में प्राणी, सब जीने के अधिकारी हैं।
इसलिए गर्व से कहते हैं, हम पक्के शाकाहारी हैं।।
4)
हम दया-धर्म की परिभाषा, पर-उपकारी बतलाते हैं।
हम पशुओं की बलि के विरुद्ध, दुनिया में अलख जगाते हैं।।
5)
हम कभी स्वाद की खातिर पशु, हिंसा को ठीक न ठहराते।
जिस बर्तन में है मांस पका, हम उसमें दाल नहीं खाते।।
6)
वह चाकू है अपवित्र सदा, जिसने पशु-गर्दन काटी है।
फल काट रहे चाकू की भी, सात्विक अपनी परिपाटी है।।
7)
फल सब्जी दूध दही दालें, यह सब की भूख मिटाते हैं।
अफसोस यही है फिर मानव, क्यों काट-काट पशु खाते हैं।।
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451