आशा!

आशा!
कल्पनाओं की
क्षीण होती दृष्टि को निर्देशित कर
चेतना से भर देती है।
परिवर्तन तथा निर्माण की प्रक्रिया में
विश्वास का प्रकाश बिखरा देती है..
और तब..
अक्सर जीने लगते हैं मृतप्राय से स्वप्न,
ऑंखों की भीगी सी पगडंडियों पर,
एक नये उल्लास में भरकर!
रश्मि ‘लहर’