कुंडलिया …..

कुंडलिया …..
अभिलाषा के नीर से, नयन करें शृंगार ।
बीते पल वो प्यार के, धधके ज्यों अंगार ।
धधके ज्यों अंगार ,बात कुछ ऐसे होती ।
बाहों में चुपचाप , रात वो बहकी सोती ।
बातें करते नैन , मचलती मन की भाषा ।
मचले बारम्बार, वही भोली अभिलाषा ।
सुशील सरना / 1-3-25