दो कदम की दूरी पे,मंज़िल थी सपनों की आसान।

दो कदम की दूरी पे,मंज़िल थी सपनों की आसान।
पर वो दो कदम ही ना चल पाएं, तमाम उम्र कर दी ख़ाक।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”
दो कदम की दूरी पे,मंज़िल थी सपनों की आसान।
पर वो दो कदम ही ना चल पाएं, तमाम उम्र कर दी ख़ाक।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”