दोहा

दोहा
साथी से दुश्मन भलौ, खिची रहे तलवार।
राज सखा ना वह भलौ, पीठ करत हो वार।।
राज सखानी ना भली, बनतइ लेय उधार।
गयो अर्थ फिर ना मिले,हंसी करे संसार।।
दोहा
साथी से दुश्मन भलौ, खिची रहे तलवार।
राज सखा ना वह भलौ, पीठ करत हो वार।।
राज सखानी ना भली, बनतइ लेय उधार।
गयो अर्थ फिर ना मिले,हंसी करे संसार।।