खुलती हैं खिड़कियाँ मग़र घुटते रह जाते सपने हज़ार है।

खुलती हैं खिड़कियाँ मग़र घुटते रह जाते सपने हज़ार है।
साखियों से झाँकते किरदार तुफ़ानों का बेसब्री से करते इंतज़ार है।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”
खुलती हैं खिड़कियाँ मग़र घुटते रह जाते सपने हज़ार है।
साखियों से झाँकते किरदार तुफ़ानों का बेसब्री से करते इंतज़ार है।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”