*शिव-आराधना (राधेश्यामी छंद)*

शिव-आराधना (राधेश्यामी छंद)
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1)
आओ हम ध्यान करें शिव का, जो सकल जगत के स्वामी हैं।
वह शिव जो घट-घट वासी हैं, वह शिव जो अंतर्यामी हैं ।।
2)
वह जड़-चेतन में सर्व-व्याप्त, वह निराकार शिव भोले हैं।
वह जन्म-मरण से परे हुए, वह मोक्ष-द्वार को खोले हैं।।
3)
वह शिव जो जग-कल्याण हेतु, विष सारे जग का पीते हैं।
वह शिव जो विष को रखे कंठ, हो नीलकंठ ही जीते हैं।।
4)
वह शिव जो वेगवती गंगा, निज जटा-जूट में धरते हैं।
वह शिव यों भागीरथ का तप, पूरा भारत में करते हैं।।
5)
सब देवों में हे महादेव, तुमको हम शीश झुकाते हैं।
जो बेर मिले मौसम के फल, तुमको वह सहज चढ़ाते हैं।।
6)
हर वस्तु तुम्हारी है जग में, सबके तुम एक प्रदाता हो।
तुम देह-रूप में वंदनीय, तुम तन से परे विधाता हो।।
7)
तुमने जीता है कामदेव, तुम संग्रह करते कब पाए।
तुम कृपा करो हे शिव शंकर, यह गुण हम में भी आ जाए।।
8)
हमको भीतर से खाली कर, हे शिव तुम हम में बस जाओ।
हे शिव शंकर तुम जैसे हो, वह योग-तत्व हम में लाओ।।
9)
तुम हे अनंत विस्तार लिए, हे शिव चेतन बनकर आओ।
इस तन के भीतर बैठ-बैठ, यह तन ब्रह्मांड बना जाओ।।
10)
हम साधक हैं हम शिष्य-रूप, हे शिव तुम हम में प्राण भरो।
तुम कृपा करो हे शिव हम पर, सब भॉंति सौम्य कल्याण करो।।
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश मबाइल 9997 615451