कुंभ पूर्ण होने पर

घनाछरी छंद
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दिव्यता और भव्यता को देख-देख विश्व जहाॅं,
सोच रहा कैसा यहाॅं श्रद्धा का राज है ।
जात नहीं पात नहीं और कोई बात नहीं,
भक्ति भाव से विभोर हो गया समाज है।
किंतु कुछ खोजते थे कमियों को घूम-घूम,
कर रहे विरोध घोर आती ना लाज है।
ऐसे खल नीच दुष्ट अधम पमारों को,
देता जवाब कुंभ पूर्ण हुआ आज है।।
– राजकुमार पाल (राज)