मुर्दा पड़ी थी कब से अब जाकर होश आया है।

मुर्दा पड़ी थी कब से अब जाकर होश आया है।
उसके काँधे पे मेरा सर है ये अब जा कर याद आया है।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”
मुर्दा पड़ी थी कब से अब जाकर होश आया है।
उसके काँधे पे मेरा सर है ये अब जा कर याद आया है।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”