ग़ज़ल…05
किसी से वैर मत रखना सभी से प्रेम से मिलना
खिला है चाँद जैसे तुम उसी की शक्ल में खिलना//1
करो तुम दोस्ती ऐसी मिसालें दे ज़माना ख़ुद
किसी संगीत में हँसके कभी तुम गीत बन घुलना//2
कभी हँसना कभी रोना यही है रीत जीवन की
यहाँ हर रंग को अपना ख़ुशी लेकर खिले चलना//3
बनो सूरज दिखाओ राह दुनिया को उजाला बन
अँधेरों से कभी तुम हारकर बस हाथ मत मलना//4
हिदायत है इनायत है तुम्हारी चाह साँसों में
बनूँ मैं आग लकड़ी तुम कि रहना साथ में जलना//5
किसी के हाल पर जाना तुझे इंसान कर देगा
कलम बनके बनो क़ागज़ किसी को ख़त कभी लिखना//6
चली आओ अदाओं की भरी थाली कभी लेकर
करेंगे अर्ज़ चाहत हम ज़रा ‘प्रीतम’ बने मिलना//7
आर. एस. ‘प्रीतम’