दोहा सप्तक. . . . . अलि
दोहा सप्तक. . . . . अलि
अलिकुल की गुंजार से , पुष्प हुए भयभीत ।
प्रीति निभाने आ गए, छलिया बन कर मीत ।।
कली – कली पर डालते , भँवरे अपना जाल ।
मधुप सुरों में डूब वह, भूल गई सुर ताल ।।
पुष्प दलों पर डोलता, भँवरों का ईमान ।
शोषण कर के तोड़ते, यह उनका अभिमान ।।
मधुप दिवाने रूप के, खूब करें उत्पात ।
पुष्पों को अभिसार की , देते यह सौगात ।।
पतझड़ आया देखकर, भँवरे हुए उदास ।
मूक बैठ कर सोचते ,कहाँ गया मधुमास ।।
आकुल कलियाँ हो गईं, देख मधुप समुदाय ।
इनसे बचने का नहीं, सूझे उन्हें उपाय ।।
अलिकुल करने आ गए, कलियों से अभिसार ।
पुष्प दलों के पास वो, करते मृदु गुंजार ।।
सुशील सरना / 25-2-25