शिवशक्ति

शीर्षक :- शिवशक्ति
शिव सम्पद चाहें नहीं, माँगा मनचाहा रूप।
शिव-शिव में समाये,चित रमे देख स्वरूप।।
शिव अर्द्धनारेश्वर एकमेव, शिव हैं शुद्ध विवेक।
चित-पट सब एकमेव, नेक न कभी अ-नेक।।
शिव त्रिनेत्र से देखते,बिना मोह छल लोभ।
सर्व हितैषी सदा शिव,जिसे न हो भय-क्षोभ।।
श्वास-श्वास में बस रहे,शिव का सहज स्वभाव।
चिंतन शुभ-लाभ की,अमिय-गरल समभाव।
है अनादि बिन अंत का,पंचतत्वपति ईश।
गरल ताप को शांत कर,पीते शंभु गिरीश हरीश।।
उषा श्रीवास वत्स