हौले हौले से

हौले हौले से
पल पल गुज़र रही है जि़न्दगी
कभी सुर्खरु कभी बेनूर
दौड़ती कभी
घिसट रही है कभी जि़न्दगी
कभी लबालब खुशियों से
कभी आँसुओं से भीगती ज़िंदगी
कभी देती है जो गुमान में भी न था
कभी सब कुछ हाथों से छीन लेती है ज़िंदगी
हिमांशु Kulshrestha