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25 Jul 2021 · 1 min read

मजहब

कोई मुझसे पूछे तेरा मजहब क्या है ?
मैं कहूं गर इंसानियत तो खता क्या है ?

मैं मंदिर भी जायूँ और मस्जिद में भी ,
गिरिजाघर और गुरुद्वारे में फर्क क्या है ?

खुदा ही भेस बदलकर बैठा सब जगह ,
ये सभी तो घर उसी के ,और घर क्या है ?

फूलों ने खुद को खुदा के नजर करना है,
कोई पूछता है की इनका मजहब क्या है ?

अब मस्जिद में चादर,मंदिर में ओढ़नी चढ़े,
मकसद उसे नवाजने के सिवा और क्या है ?

इबादत दिल से होनी चाहिए चाहे जैसे हो ,
मतलब उसे याद करने है और भला क्या है ?

ईद में मैं सेवियां खायूं और नवरात्रों में खीर ,
क्रिसमस में केक, गुरुपर्व में हलवा हर्ज़ क्या है ?

वतन में सभी बंधके रहे एकता की डोर में,
इससे जायदा मुहोब्बत की मिसाल क्या है ?

वैसे भी सारे मजहब खुदा ने तो नही बनाए ,
तुम तोड़ दो बीच की दीवार फिर बात क्या है !

अब मान भी जाओ सब उसी की औलादें है ,
रूह सबमें एक जैसी लहू के रंग में फर्क क्या है ?

“अनु ” की जिंदगी का एक ही ख्वाब है एकता,
खुदा के हुजूर में की गई इससे बड़ी दुआ क्या है ?

3 Likes · 10 Comments · 571 Views
Books from ओनिका सेतिया 'अनु '
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