पल्लव
पल्लव
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वहाँ दूर
उस कोने में
ठूँठ वृक्ष पर
एक शाख में
उस आखिरी पत्ते को
देख रहे हो
बहुत बोझ है उस आखिरी पत्ते पर
उसे बचानी है
पूरी शाख
पुरखों की पहचान,
विरासत और हाँ
मर्यादा भी
निभानी है उसे
हवा की दुश्मनी भी,
तूफानों ने कसम खा रखी है
उसे गिरा देने की
पूरी हिम्मत के साथ
डंटा है
वह आखिरी पल्लव
उस समृद्ध,मर्यादित
विरासत का
वक़्त के
थपेड़े को झेलता हुआ
इकलौता वंश।
– अनिल कुमार मिश्र,राँची