दोहे बनारस पर
तट पर गंगा मातु के, काशी पावन धाम।
आता दर्शन के लिए, नियमित यहां अवाम।।
कण कण में जिस भूमि के,हो शंकर का वास।
नगरी अपने आप वह, हो जाती है खास।।
विश्वनाथ के नाम से, शंकर का शिव लिंग।
रही हमेशा ही वहीं, गंगा मैया ढिंग ।
बनारसी साड़ी यहां, बनती जो मशहूर।
उसकी देखी है छटा, हमने दूर सुदूर।।
विश्वनाथ मंदिर वही, पूरे अस्सी घाट ।
आते हैं हमको नजर, गंगा के दो पाट।।
अन्नपूर्णा मातु का मंदिर, यहां विशाल।
भत्तों का आवागमन, रहे समूचे साल ।।
महापुरी है धार्मिक, वाराणसी रमेश ।
मुक्ति धाम का हो रहा, अनुपम यहां निवेश।।
नगर बसा त्रिशूल पर, महादेव के खास।
संग देव के नर करें, काशी धाम निवास ।।
हर दिन ही दशमेश पर, डुबकी लेते संत।
धोने पावन गंग में, अपने पाप अनंत।।
रमेश शर्मा.