दोहा गजल

बहुत दिनों के बाद भूल न पाया प्यार ।
नित्य महकता ही रहा,प्रेम-रतन घनसार ।।
प्रेम धुनि उर में रमी,बनाया बहुत प्रवीण ।
निशिदिन बढता ही रहा,अंतर में व्यवहार ।।
भावो का अंजन किया ,दृग से दृग संधान ।
प्रीति रंग गाढ़ी रँगी ,उतरी नहीं खुमार ।।
भाग कहाँ जाता पिया,दिया तुने अब डाल ।
अंतर्मन की प्रीति यह,बन बैठी सूबेदार ।।
यादों को उर में लिए,गुँथता माला हाथ।
पावन प्रियता नित्य ही,करती मन संस्कार ।।
पा अनुपम इस रीति को,पायी मन की प्रीति ।
लगा विचारों का रहा,अंतर में दरबार ।।
मान हृदय अपना उसे,किया प्रेम संभ्रांत ।
निश्चय ही पाता रहा,अपना मैं विस्तार ।।
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
8/12/2021
वाराणसी