ग़ज़ल _ शौक़ बढ़ता ही गया ।
आदाब दोस्तों 🙏 🌹
दिनांक _ 08/01/2025,,,
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ताज़ा #ग़ज़ल
1,,
शौक़ बढ़ता ही गया, ज़ेर – ज़बर सीख लिया ,
बा-ख़ुदा हमने भी लिखने को बहर सीख लिया ।
2,,
मुस्तक़िल करते रहे कोशिशें हिम्मत न गिरी ,
अपने सीने की शुआओं पे ज़रर सीख लिया ।
3,,
उम्र छोटी थी विदा कर ही दिया माँ ने मुझे ,
हौसला टूट गया जब, तो क़हर सीख लिया ।
4,,
छोड़ कर घर से चली माँ के , तो रोना आया ,
दर्द शिद्दत का हुआ और सबर सीख लिया ।
5,,
आ के ससुराल में नफ़रत की निगाहें देखी ,
दिन गुज़रते ही गए, फिर तो मफ़र सीख लिया ।
6,,
हर घड़ी तंज़ ने ज़ख्मों को कुरेदा था बहुत ,
ज़ब्त करने का मुक़द्दर से हुनर सीख लिया ।
7,,
सामने रह के भी जिससे न मिली थी उल्फ़त ,
मुझसे बिछड़ा जो मेरा यार क़दर सीख लिया ।
8,,
बात मानी है सदा से ही , तुम्हारी हम दम ,
हद में रहने का कहा जबसे, असर सीख लिया।
9,,
कौन आता है भला राह दिखाने हर सू ,
“नील”दुनिया में जो भटकी,तो दिगर सीख लिया।
✍️नील रूहानी,,,, 08/01/2025,,,,,,,🥰
( नीलोफर खान )
शब्दार्थ __;
ज़ेर – ज़बर _ उर्दू की नीचे , ऊपर की मात्राएं ,,,
बहर _ उर्दू कविता में एक मीटर माप का ,,,
ज़रर _ दुख , तकलीफ़,,, क़हर _ क्रोध , तबाही ,,,
शुआओं _ किरणें ,,,मफ़र _ बचाव ,,,, दिगर _ दुबारा