प्रेम
जाने कितने तबाह हुए इश्क, प्यार की बीमारी में,
जो नही हुए थे अब तक, वो भी बैठ गए तैयारी में,
प्रेम दिवस का ज़ाल बुन लिया लोगो ने व्यापारी में,
उलझ गये कुछ रिश्ते केवल तोहफ़ों की बाज़ारी में,
अब जैसे मोहताज़ हो गया केवल प्रेम प्रदर्शन का,
प्रेम था मीरा जैसा सच्चा मन ही मन में दर्शन का,
भाव भँवर में उतरो,समझ न सकते बैठ किनारी में,
प्रेम प्रकृति की सुंदर कन्या,शामिल जो चहुँआरी में
प्रेम समझना प्रेम निभाना,प्रेम को पाना मुश्किल है
प्रेम में खुद को खो देना प्रेम को पाने की मंज़िल है,
सात समंदर की दूरी भी कम लगती इस अय्यारी में
वफ़ा प्रेम से सबक सीखती खोके इस अदाकारी में