अब उस की याद रात दिन नहीं, मगर कभी कभी

मैं इश्क़ का असीर था
वो इश्क़ को क़फ़स कहे
कि उम्र भर के साथ को
वो बद-तर-अज़-हवस कहे
न उस को मुझ पे मान था
न मुझ को उस पे ज़ोम ही
जो अहद ही कोई न हो
तो क्या ग़म-ए-शिकस्तगी
भली सी एक शक्ल थी
भली सी उस की दोस्ती
अब उस की याद रात दिन नहीं,
मगर कभी कभी।
~ अहमद फ़राज़