गीत तनहा ही गा लिये हमने

ज़ख्म़ फूलों से खा लिये हमने
चश्मे-तर भी छुपा लिये हमने
फ़ुर्सतें किसको कौन सुनता है
गीत तनहा ही गा लिये हमने
नफ़रतों से नहीं है कुछ हासिल
हाथ सब से मिला लिये हमने
ग़ौर जब भी किया उसूलों पर
बैर दिल से मिटा लिये हमने
बे ख़बर थे कभी सफ़र से हम
लुत्फ़ वो भी तो पा लिये हमने
इस ज़माने के ख़ौफ़ से यारो
ख़त ग़मों के जला लिये हमने
शह्र में था मकां हमारा भी
सब ज़रर में हटा लिये हमने
शजर की जुस्तजू में’ थे हम तो
क्यूँ क़फ़स फिर सजा लिये हमने
तिश्नगी ही रही सदा “पंकज”
खूं के’ आँसू पिला लिये हमने