भय की महिमा देखो

भय से कोई न प्रीत करता,
कर्ता धरता भी स्वाहा करता,
संकुचित होकर हाहा करता,
पागल जैसे वाह वाह करता।
कैसा है भय की महिमा देखो,
खुद की परछाई से दौड़ता है देखो,
मन ही मन लड़ता है सोचो,
बे वजह ही मरता है वह तो,
ऐसे न अंधविश्वास फैलाओ,
पाखण्डी के चक्कर मे न आओ,
घबरा कर न कोई बवाल मचाओ,
मानसिकता से तालमेल बैठाओ।
अपने अंदर है क्या?,
उसको तुम जनो,
सत्य बीज कौन ? उसे पहचानो !,
भय मुक्त हो मार्ग निकालो।
किसने किसको मरते देखा,
प्राण को निकलते देखा,
नहीं है वो जन्मे कैसे,
जो जन्मे है मरते वैसे।
राग द्वेष ने भय को पाला,
अविश्वास ने जन्म दे डाला,
बोलो क्या कर सकता है अब,
खुद ही भय का बना रास्ता है।
रुको साँस तो लेने दो,
रूबरू भी तो होने दो,
मिट जाएगा भय जो अंदर है,
वही है सब मे, मस्तकलंदर है।
बुद्ध प्रकाश,
मोदहा हमीरपुर।