सोचते सोचते ये शाम भी निकल गयी

सोचते सोचते ये शाम भी निकल गयी
पता नहीं कब आएगी वो घड़ी
चली ना जाए वो अब दूर
अब दोस्ती, यारी, भाईगिरी जैसी बातों से क्या फायदा
वो तो मेरे दोस्त के साथ निकल गयी
सोचते सोचते ये शाम भी निकल गयी
पता नहीं कब आएगी वो घड़ी
चली ना जाए वो अब दूर
अब दोस्ती, यारी, भाईगिरी जैसी बातों से क्या फायदा
वो तो मेरे दोस्त के साथ निकल गयी