और अब हाथ मल रहा हूं मैं
2122 1212 22
तेरी यादों में जल रहा हूं मैं
और अब हाथ मल रहा हूं मैं।
खुद ही जलकर रोशनी देता
अब तो सूरज सा ढल रहा हूं मैं।
तेरी तल्ख़ी जुबान से जख्मी
धीरे -धीरे संभल रहा हूं मैं।
यू ना मुझसे गलत कहा कर तू
क्या समय सा बदल रहा हूं मैं।
ऐसे क्या जग में मान है” नूरी”
कई सवालों का हल हूं मैं।।
नूर फातिमा खातून “नूरी”
जिला -कुशीनगर
उत्तर प्रदेश
मौलिक स्वरचित