sp41 किस्मत का हो गया /अजब खेल है
sp41 किस्मत का हो गया/ अजब खेल है
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किस्मत का हो गया इशारा आँख हमारी सजल हो गई
बहने लगे आंखों से आंसू जीवन संध्या रहल हो गई
किससे मन की पीर बताएं दुनिया को कैसे समझाएं
व्यथा बताई हमने अपनी दुनिया समझती गजल हो गई
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रहल= लकड़ी का स्टेन्ड
जिस पर किताबें / धर्म ग्रंथ रखते है
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अजब खेल है इस जीवन का किसे कहां पर ढूंढ रहा हूं
झूठ की लहरें हरसू फैली सच का समंदर ढूंढ रहा हूं
जो है मेरे मन के अंदर उसे कहां पर ढूंढ रहा हूं
यायावरी गजब की देखो खुद अपना घर ढूंढ रहा हूं
चला गया जो कभी ना आया उसको क्यों कर ढूंढ रहा हूं
मन की कैसी लाचारी है नींद में बिस्तर ढूंढ रहा हूं
धोखा मिलता हर बस्ती में सच की चादर ढूंढ रहा हूं
सागर तट पर बैठ अकेले खुद को अक्सर ढूंढ रहा हूं
रहजन ना बन जाए बदलकर ऐसा रहबर ढूंढ रहा हूं
मक्कारो की इस दुनिया में क्यों पैगंबर ढूंढ रहा हूं
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डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव
यह भी गायब वह भी गायब