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29 Nov 2020 · 1 min read

धूप

रँग बदलती हुई मौसमी धूप है
चुभ रही है कहीं भा रही धूप है

रूपसी है धरा जगमगाता गगन
भोर की खिल रही मखमली धूप है

थी सुनहरी चमक पीली पड़ने लगी
सांझ होने लगी, थक गई धूप है

बैर इसका बड़ा बादलों से रहा
ऐंठती ही रहे नकचढ़ी धूप है

तेज होकर जलाती यही ‘अर्चना’
सेकती पर बदन गुनगुनी धूप है

24-11-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद

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